Tuesday, December 20, 2022

नवदुर्गा का समय और जवारे का वैज्ञानिक व व्यवहारिक महत्व

भारत मे दो मौसमो मे नवरात्री मनाई जाती है एक चैत्र मे और एक अभी हाल मे शारदिय नवरात्र शुरू होगा। चैत्र नवरात्र ठंड के बाद गर्मी का संक्रमण काल ,तथा शारदिय मे बारिश और गर्म से शित के संक्रमण काल मे मनाया जाता है जिसमे खान- पान और मौसम परिवर्तन होता है शरिर मे विषैले तत्वो को निकालने और मेटाबोलिजम को नियंत्रीत करने उत्तम समय काल होता है ,

साथ साथ जंवारे बोने के पिछे विज्ञान यह होता रहा होगा की दोनो संक्रमण कालो मे बिच जो 6-7 दिनो मे 7-8 ईंच बढे हो जाते है तथा 9 दिनो मे उनकी उपज का आंकलन करना संभव हो जाता है ,जिससे “उन्नत बिज” का निर्धारण करके गांव- नगर या मौहल्ले सबसे ” उन्नत ऊपजाऊ बिज” को बुआई के लिये बिज के बदले बिज के रूप मे वितरित करने के उपरांत उन्नत बीज बुआई के लिए एवम् कम उन्नत बीज खाने के लिये उपयोग कर लिया जाता रहा होगा।

साथ ही साथ सबकी जानकारी के लिये प्रदर्शन हेतु नाच गाने के साथ “जंवारो” को सर पर उठाकर सडको रास्तो पर दिखाया जाता रहा होगा की आप चुनाव कर ले की किसके बिज उन्नत है।
साथ ही ईन मौसमो मे खाली पांव और औंस वाली घास पर चलना भी आँखो और एक्युप्रेशर के हिसाब से स्वास्थप्रद होता है जिस कारण से अपने खडाऊ- जुते -चप्पलो का त्याग कर दिया जाता है।
जँवारो के रंग रूप के आधार पर ही उन्हे प्राणदायी माता के रूप मे पुजा जाता रहा होगा।

यह लेख केवल मेरी अपनी व्यक्तिगत सोच समझ और भारतिय पद्दती मे पायी जाने वाली वैज्ञानिकता एवम् व्यवहारिकता से प्रेरित है ।
पौराणिक , शास्त्रीय ,ओर धार्मिक आस्था का अपना महत्व तो चिरकाल से विद्यमान है।

विष्णु शर्मा

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