धमतरी। धमतरी जिला बांधों के लिये मशहूर है। लेकिन जब गंगरेल बांध नहीं बना था तब, वहां बसे गांवो में शक्ति स्वरूपा मां अंगारमोती इस इलाके की अधिष्ठात्री देवी थीं। बांध बनने के बाद वो तमाम गांव डूब में चले गए। लेकिन माता के भक्तो ने अंगारमोती की गंगरेल के तट पर फिर से स्थापना कर ली है। यहां सालभर भक्त दर्शन करने और मन्नत मांगने आते रहते हैं।
लेकिन पूरे साल में एक दिन सबसे खास होता है.. दीपावली पर्व के बाद का पहला शुक्रवार। इस दिन यहां भव्य मड़ई लगता है। हजारो लोग इस दिन यहां पर जमा होते हैं। आदिवासी परंपराओं के साथ पूजा होती है और तमाम रीतियां निभाई जाती हैं। इसी दिन यहां बड़ी संख्या में ऐसी महिलाएं पहुंचती हैं, जिनकी गोद सूनी है। संतान नहीं है, कोई मां कहने वाला नहीं है।
ऐसी मान्यता है कि उन महिलाओ को मां का दर्जा अंगार मोती मां दिलवाती हैं। मंदिर के सामने हाथ में नारियल-अगरबत्ती, नींबू लिये कतार में खड़ी होती हैं महिलाएं। इन्हें इंतजार रहता है कि कब मुख्य बैगा मंदिर के लिये आएगा। दूसरी तरफ वो तमाम बैगा होते हैं, जिन पर मां अंगार मोती सवार होती हैं। वो झूमते झूपते थोड़े बेसुध से मंदिर की तरफ बढ़ते हैं। चारो तरफ ढोल नगाड़ों की गूंज रहती है। बैगाओं को आते देख कतार में खड़ी महिलाएं पेट के बल दंडवत लेट जाती हैं। सभी बैगा उनके उपर से गुजरते हैं।