Thursday, November 13, 2025

महापौर अलका बाघमार एवं आयुक्त सुमित अग्रवाल की उपस्थिति में महत्वपूर्ण निर्णय पारित

दुर्ग शहर को मिली नई साहित्यिक पहचान, जेल तिराहा से पुलगांव मार्ग होगा पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे के नाम से

एमआईसी बैठक में ऐतिहासिक फैसला, कवि डॉ. सुरेंद्र दुबे के नाम पर सड़क का नामकरण

छत्तीसगढ़ स्थापना दिवस पर नगर निगम ने दिया साहित्य को सम्मान का उपहार

शहर के साहित्यकारों की मांग हुई पूरी  डॉ. सुरेंद्र दुबे के नाम से जाना जाएगा प्रमुख मार्ग

दुर्ग : न्यूज़ 36 : छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर नगर पालिक निगम दुर्ग में आयोजित महापौर परिषद (एमआईसी) की बैठक में एक ऐतिहासिक निर्णय लिया गया। बैठक की अध्यक्षता महापौर अलका बाघमार ने की, जिसमें आयुक्त सुमित अग्रवाल सहित एमआईसी के सभी सदस्य उपस्थित रहे।

बैठक में जेल तिराहा (अटल परिसर) से पुलगांव चौक तक के मार्ग का नामकरण कवि पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे के नाम पर किए जाने के प्रस्ताव को सर्वसम्मति से स्वीकृति दी गई।

महापौर अलका बाघमार ने बताया कि डॉ. सुरेंद्र दुबे छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध हास्य कवि, साहित्यकार और विद्वान हैं, जिन्होंने अपने लेखन और मंचीय प्रस्तुति से राज्य का नाम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोशन किया है। ऐसे प्रतिभाशाली साहित्यकार के नाम पर मार्ग का नामकरण करना पूरे शहर के लिए गर्व की बात है।

महापौर अलका बाघमार और आयुक्त सुमित अग्रवाल ने कहा कि यह निर्णय नगर निगम की उस भावना का प्रतीक है, जिसमें समाज के सभी क्षेत्रो साहित्य, कला और संस्कृति को समान सम्मान दिया जाता है।इस प्रस्ताव का शहर के साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों ने स्वागत किया है।

महापौर अलका बाघमार ने बताया कि यह मांग लंबे समय से की जा रही थी कि किसी प्रमुख सड़क या चौक को डॉ. दुबे के नाम से जोड़ा जाए, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ उनके योगदान से परिचित हो सकें।बैठक के मौके पर एमआईसी सदस्य नरेंद्र बंजारे, लीना दिनेश देवांगन,शेखर चंद्राकर, काशीराम कोसरे,ज्ञानेश्वर ताम्रकर, मनीष साहू,शिव नायक नीलेश अग्रवाल,लीलाधर पाल,शशि साहू,उपायुक्त मोहेंद्र साहू,कार्यपालन अभियंता विनीता वर्मा,गिरीश दीवान,आर.के जैन,प्रकाश चन्द थावानी,दुर्गेश गुप्ता,रेवाराम मनु,आर.के बोरकर सहित अधिकारी/कर्मचारी मौजूद रहें।

इस अवसर पर एमआईसी सदस्यों ने कहा कि ऐसे निर्णय शहर की सांस्कृतिक पहचान को और मजबूत बनाते हैं।छत्तीसगढ़ स्थापना दिवस पर यह निर्णय शहर के साहित्यिक समुदाय के लिए सम्मान और प्रेरणा का प्रतीक बन गया है।

 

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