विश्व में भारत को सांस्कृतिक दिग्विजय दिलाई संस्कृत ने : आचार्य डॉ.शर्मा
दुर्ग : न्यूज़ 36 : “राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारतीय ज्ञान -विज्ञान परम्परा के आधार ग्रन्थ वैदिक साहित्य और रामायण आदि संस्कृत में निहित हैं।पुराण साहित्य और गीता आदि भी इसके भण्डार हैं। कालिदास और तुलसीदास आदि के साहित्य में भी ज्ञानगंगा प्रवाहित है। वर्षों पूर्व हमारे योद्धा युवा संन्यासी स्वामी विवेकानन्द जी ने अमेरिकी शहर शिकागो में ग्यारह सितंबर को विश्व विद्वानों की धर्मसभा में इसी पृष्ठभूमि पर सिंहनाद किया।
ये हमारी सांस्कृतिक दिग्विजय थी। संस्कृत की इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका थी।” ये उद्गार हैं संस्कृत – संस्कृति मर्मज्ञडॉ.महेशचन्द्र शर्मा के। आचार्य डॉ.शर्मा साइंस कॉलेज दुर्ग में रूसा की विशेष व्याख्यानमाला में प्राध्यापकों एवं विद्यार्थियों को सम्बोधित कर रहे थे। अनेक पुस्तकों के लेखक और देश-विदेश के सफल भ्रमण कर चुके आचार्य डॉ. शर्मा ने शा.वि.या.ता.स्वशासी स्नातकोत्तर महाविद्यालय दुर्ग में अपनी दो पुस्तकें भी विद्यार्थियों और प्राध्यापकों को नि: शुल्क भेंट कीं। “शुकनासोपदेश”पाठ्य-पुस्तक है जबकि “छत्तीसगढ़ में संस्कृत” शोधपूर्ण सन्दर्भ ग्रन्थ है।
युवा वर्ग के चरित्र निर्माण में और राज्य की स्थापना की रजत जयन्ती पर क्रमशः दौनों पुस्तकें महत्त्वपूर्ण हैं। प्राचार्य डॉ.अजय कुमार सिंह की प्रेरणा और मार्गदर्शन में कार्यक्रम सफल रहा। भौतिक विज्ञान प्रोफ़ेसर एवं प्रभारी प्राचार्य डॉ.जगजीत कौर सलूजा ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में संस्कृत का विशेष महत्त्व है, इससे विद्यार्थियों का भविष्य उज्ज्वल होगा। मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ.रचिता श्रीवास्तव भी उपस्थित थीं। कार्यक्रम के संयोजक एवं संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो.जनेन्द्र कुमार दीवान ने सफलतापूर्वक संचालन करते हुवे अन्त में आभार ज्ञापन किया।