Wednesday, February 5, 2025

लेखिका डॉ नलिनी के निबंध संग्रह ‘सांस्कृतिक  संचेतना’ का विमोचन 

भिलाई : न्यूज़ 36 : हिंदी की सुविख्यात कथाकार एवं लेखिका डॉ नलिनी श्रीवास्तव के निबंध संग्रह ‘सांस्कृतिक संचेतना’ का शनिवार 18 जनवरी को भिलाई निवास के सभागार में ख्यातिलब्ध साहित्यकारों की मौजूदगी में विमोचन किया गया। इस अवसर पर विमोचित कृति पर साहित्यिक विमर्श भी हुआ। वहीं समाज सेवा, साहित्य, संस्कृति और शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए वैभव प्रकाशन और छत्तीसगढ़ राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, रायपुर ने उन्हें साहित्य वैभव सम्मान से अलंकृत भी किया। इससे पहले अतिथियों ने देवी सरस्वती के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित कर विमोचन समारोह की विधिवत शुरुआत की।


समारोह का संचालन करते हुए डॉ सुधीर शर्मा ने कहा कि पूरे हिंदुस्तान में सांस्कृतिक निबंध की ललित परंपरा की शुरुआत अगर किन्हीं साहित्यकार ने की है, तो वे डॉ नलिनी श्रीवास्तव हैं। साहित्य वाचस्पति पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की विरासत, परंपरा और संस्कृति को उनके परिवारजन लगातार आगे बढ़ा रहे हैं और उनमें डॉ नलिनी का नाम सर्वोपरि है। निबंध संग्रह की लेखिका एवं बख्शी जी की पौत्री नलिनी ने तीन महीने के अंदर प्रकाशन पूर्ण होने का श्रेय वैभव प्रकाशन को दिया है। उन्होंने कहा कि वैसे तो मैं बहुत पहले से निबंध लिखती थी। दादाजी के कारण घर का वातावरण साहित्यिक था। उनसे मिलने के लिए साहित्यकार आते थे। उनकी किताबें देखती और पढ़ती थी। लेकिन, लिखने का जोश दादाजी की मृत्यु के बाद आया। उनकी लिखी एक लाइन का खास तौर पर जिक्र करते हुए कहा कि मुझे (दादाजी) विश्वास है कि नलिनी साहित्य में काम कर सकेगी। मैं उस लाइन को बार-बार पढ़ती। आखिरकार मुझे एहसास हुआ कि मैं भी लिख सकती हूं।
वरिष्ठ साहित्यकार परदेशी राम वर्मा ने लेखिका की सराहना करते हुए कहा कि नलिनी ने पारिवारिक जिम्मेदारियां बखूबी निभाते हुए बख्शी जी की परंपरा को उनके अनुरूप निभाया। जाने माने साहित्यकार रवि श्रीवास्तव ने विमोचन दिवस को अत्यंत महत्वपूर्ण मानते हुए कहा कि विमोचन से न केवल लेखिका को, बल्कि यहां पर उपस्थित लोगों को भी प्रेरणा मिलती है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि यहां पर मौजूद सभी लोग एक अच्छा अनुभव लेकर ही लौटेंगे। वरिष्ठ साहित्यकार गुलबीर सिंह भाटिया ने भाषा की शुचिता पर जोर देते हुए भाषा को बरतन और उसमें रखी गई सामग्री को साहित्य की संज्ञा दी।

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