Project Cheetah : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कल शनिवार को नामीबिया से भारत लाए गए चीतों को मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ेंगे. पीएमओ ने गुरुवार को जारी एक बयान में यह जानकारी दी थी. पीएमओ ने कहा कि भारत में चीता को फिर से बसाने का कार्य, प्रोजेक्ट चीता के तहत किया जा रहा है. इस प्रोजोक्ट को नामीबिया सरकार की ओर से देख रही चीता कंजर्वेशन फंड की फाउंडर और एग्जक्यूटिव डायरेक्टर डॉ लूरी मार्कर ने कहा कि भारत में मानव-पशु संघर्ष सबसे बड़ी चुनौती है.
नामीबिया से भारत आ रहे चीते परिवार की स्पेशल फ्लाइट अब ग्वालियर में लैंड करेगी. इससे पहले इसे जयपुर लैंड करना था, लेकिन लॉजिस्टिक की दिक़्क़त को देखते हुए अब फ्लाइट को ग्वालियर लैंड कराने का फ़ैसला लिया गया है. ग्वालियर से हेलीकॉप्टर के ज़रिए चीतों को कुनो नेशनल पार्क ले जाया जाएगा. चीतों का विमान ग्वालियर 17 सितंबर की सुबह आठ बजे उतरने की उम्मीद हैं.
बता दें कि शुक्रवार को पांच मादा और तीन नर चीता भारत के लिए यात्रा कर रहे हैं. यह यात्रा करीब 10 घंटे की और 8 हजार किमी की होने वाली है. यह चीता बोइंग 747 से यात्रा कर रहे हैं जो कि विश्व में चीता को लाने-ले जाने में माहिर है. यह जानकारी डॉ लूरी मार्कर ने दी. लाए जाने वाले चीतों की उम्र 2 साल से 6 साल के बीच है. इन चीतों को ‘बोमा’ (एक तरह का पिंजरा) में कोरेंटीन होने के लिए और ट्रीटमेंट के लिए रखा गया था. उन्होंने बताया कि सभी चीतों को वैक्सीनेशन भी दिया गया है. (Project Cheetah)
मानव-पशु संघर्ष है चिंता की बात
मोडिफाइड बोइंग कार्गो प्लेन नामीबिया की राजधानी विंडहोक के होसिया कुटाको इंटरनेशनल एयरपोर्ट से ग्वालियर पहुंचेगा. यह प्लेन गुरुवार को रवाना हुआ है जिसके बाद आज शुक्रवार को भारत पहुंचेगा. इस यात्रा के बाद इस चीता परिवार को मध्यप्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान लाया जाएगा. लूरी ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में भारत में जंगली पशुओं की मानव संघर्ष पर चिंता जाहिर की है.
सीसीएफ को नामीबिया सरकार की ओर से चीता प्रोजेक्ट का इंचार्ज बनाया गया है. लूरी ने बताया कि उन्होंने सबसे पहले 2005 में चीता रीलोकेशन प्रोजेक्ट लीड किया था. इस दौरान उन्होंने नामीबिया से साउथ अफ्रीका चीता प्रोजेक्ट को लीड किया था. आज के समय में अफ्रीका में चीतों की तादाद काफी अच्छी है.
अफ्रीका में जागरुकता अभियान से सुधरे हालात
लूरी ने कहा, ‘करीब 77 प्रतिशत चीता अफ्रीका में प्रोटेक्टेड एरिया से बाहर रहते हैं. लेकिन फिर भी यहां मानव-चीता संघर्ष की घटनाएं कम होती हैं. इसका यह कारण नहीं है कि चीता कम आक्रामक पशु है बल्कि इसकी वजह है अफ्रीकी सरकार के जरिए चलाया जा रहा जागरुकता अभीयान. यहां किसानों को चीता अगर सामने आ जाए तो उससे कैसे बचना है यह बहुत अच्छे से सिखाया जा रहा है. चीता घरेलू पशुओ पर हमला करते हैं, यह चीता के लिए सबसे खतरनाक है. खासतौर पर भारत में इन्हें फिर से बसाने के प्रोजेक्ट में यह बहुत बड़ा खतरा है.’
लूरी ने भारत में जंगली जानवरों की स्थिति पर चिंता जाहिर करते हुए कहा, ‘चीता के लिए खतरा तब बढ़ जाता है जब वह अपने पालतू पशुओं को इनसे बचाने की कोशिश करते हैं. लेकिन कुछ तरीके हैं जिससे ऐसे चीता हमलों से बचा जा सकता है. जैसे गार्जियन डॉग्स रखना, चरवाहे रखना और अपने जानवरों को हेल्थी रखना ताकि वह चीता का शिकार न बन पाएं.’ (Project Cheetah)