तीन दिन तक जिक्र और लंगर सहित कई आयोजन हुए
भिलाई। हजरत दाता बाबा भोला शफी शाह रहमतुल्लाह अलैहि का सालाना तीन दिवसीय उर्स पाक ग्राम बीरेभाठ (नंदिनी एयरोड्रम के समीप) स्थित खानकाह में पूरी शानो-शौकत के साथ मनाया गया। 29 नवंबर से शुरू हुए उर्स में देश के अलग-अलग हिस्सों से अकीदतमंद पहुंचे। यह उर्स पाक बाबा सरकार के जानशीं (उत्तराधिकारी) हजरत कायम शाह वली (बाबू सरकार) की निगरानी और मौजूदगी में शुक्रवार को लंगर और फातिहा ख्वानी के साथ संपन्न हुआ।
पहले दिन उर्स की शुरूआत बाबू सरकार के हाथों अलम शरीफ फहराने के साथ हुई। रात में महफिले मिलाद, लंगर, फातिहा और शिजरा ख्वानी में अकीदतमंद बड़ी तादाद में जुटे। दूसरे दिन 30 दिसंबर को सूफी संत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की सुन्नत की अदायगी में गागर शरीफ की रस्म अदा की गई।
जिसमें खास तौर पर तैयार की गई मटकियों में पानी भर कर खानकाह में लाया गया। इसके बाद लंगर में लोग शामिल हुए और समा महफिल में मंजूर आलम साबरी ने कलाम पेश किए। उर्स के आखिरी दिन शुक्रवार को कुल शरीफ की फातिहा हुई और मुल्क में अमन व चैन की दुआएं की गईं।
आर्किटेक्ट हाजी एमएच सिद्दीकी ने बताया कि भिलाई की इस खानकाह की संगे बुनियाद 6 दिसंबर 2007 को बाबू सरकार ने रखी थी। 13 मार्च 2008 को बाबा सरकार की सालगिरह पर इस सरजमीं पर परचमे साबरी फहराया गया और 5 दिसंबर 2012 को बाबू सरकार के मुबारक हाथों से गुंबद पर कलश लगाया गया। हाजी सिद्दीकी ने बताया कि पीरो मुरशिद हजरत दाता बाबा भोला शफी शाह रहमतुल्लाह अलैहि साबरी सिलसिले की एक प्रमुख हस्ती हैं। जिनका मजार मुकद्दस उत्तर प्रदेश में देवरिया जिले के सलेमपुर स्टेशन से 5 किमी की दूरी पर कस्बा मझौली राज में छोटी गंडक नदी के किनारे है। उन्होंने कहा कि खानकाह में जो भी अकीदतमंद अपनी मुहब्बत के साथ बाबा सरकार की निशानियों की जियारत करता है, वो मुरादों की झोली भरा पाता है। उन्होंने बताया कि उर्स पाक में इस बार भी स्थानीय लोगों के अलावा बिहार, यूपी, महाराष्ट्र, झारखंड, मध्यप्रदेश व दूसरे प्रदेशों से बड़ी तादाद में अकीदतमंद पहुंचे।
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