समस्त ज्ञान-विज्ञान को व्यक्त कर सकते हैं नाटक – आचार्य शर्मा
भिलाई : न्यूज़ 36 : केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के भोपाल परिसर में सम्पन्न तृतीय अखिल भारतीय रूपक महोत्सव में भिलाई के साहित्य-संस्कृति मर्मज्ञ आचार्य डॉ. महेश चन्द्र शर्मा को विशेषज्ञ समीक्षक के तौर पर आमंत्रित किया गया।
भोपाल के रविंद्र भवन में इन नाटकों के हजारों दर्शकों से प्रेक्षागृह लगातार चार दिन खचाखच भरा रहा। कुलपति प्रो.श्रीनिवास बरखेड़ी, मुख्य अतिथि साहित्य अकादमी नई दिल्ली के सचिव डॉ.के.श्रीनिवास राव, संस्था के निदेशक प्रो.रमाकान्त पाण्डेय एवं कुलसचिव प्रो. आरजी मुरली कृष्णन आदि भी विशेष रूप से उपस्थित रहे।
इस दौरान डॉ. शर्मा ने कहा कि कोई ऐसी कला,विद्या, शिल्प,कर्म, काव्य या विधा नहीं जिसे रूपक या नाट्य मंचनों द्वारा व्यक्त किया न जा सके। समस्त ज्ञान-विज्ञान को नाटक व्यक्त कर सकते हैं। इस आशय का नाट्यशास्त्र एक पद्य आज कल भारत भवन को पोस्टरों में मुद्रित और लोकप्रिय है। भगवद्गीता में भी समस्त शास्त्रों का सार निहित है। यूनेस्को द्वारा उक्त दोनों ग्रन्थों को विश्व धरोहर घोषित करने से पूरे भारत को गर्व है।
आचार्य डॉ. शर्मा ने बताया कि भगवदज्जुकीयम् , मन्त्र दानम् , महिमामय भारतम् , विषय परिणय , धर्मचक्रप्रवर्तन, शम्बूक अभिषेक और कौण्डिन्य प्रहसन आदि के सफल मंचन की सबने सराहना की। 14 संस्कृत विश्वविद्यालयों के 800 विद्यार्थियों ने 20 से अधिक नाटकों का मंचन किया। श्रीकृष्ण और पंचतन्त्र के अलावा शेक्सपियर पर संस्कृत नाटक खेले गये।
समीक्षक के रूप में उपस्थित भिलाई के विद्वान डॉ महेश चन्द्र शर्मा का शॉल-श्रीफल, भोजराज पंचांग एवं शास्त्रीय ग्रन्थ भेंट कर अभिनन्दन किया गया। उल्लेखनीय है कि इस विश्वविद्यालय के पूर्व रूप राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान नई दिल्ली द्वारा 2012 में दिल्ली में सम्पन्न पन्द्रहवें विश्व संस्कृत सम्मेलन में भी डॉ. शर्मा को विशेष रूप से आमन्त्रित किया गया था।
रूपक महोत्सव के बाद,पूरे देश के साथ यहां भी नई शिक्षा नीति के अनुसार भारतीय ज्ञान परम्परा पर भी राष्ट्रीय संगोष्ठी हुई जिसमें डॉ. महेश शर्मा ने भी भाग लिया। इसमें अनुसंधान और नवाचार को जीवन्त प्रवाह बताया।
इसके अतिरिक्त दत्तोपन्त ठेंगड़ी संस्थान भोपाल द्वारा मप्र विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद मेपकॉस्ट में सम्पन्न राष्ट्रीय शोधार्थी समागम में भी आचार्य डॉ.महेश चन्द्र शर्मा विशेष रूप से उपस्थित रहे। देश भर से आये 280 शोधार्थियों को 40 से अधिक शिक्षाविदों ने भारतीय ज्ञान परम्परा के विषय में जानकारी दी। इस दौरान डॉ. शर्मा को मुख्य अतिथि हनुमत निवास अयोध्या पीठाधीश्वर आचार्य मिथिलेश नन्दिनी शरण का मार्गदर्शन मिला।