महादेव ऐप के प्रमोटर सौरभ चंद्राकर (Saurabh Chandrakar) पर भी शिकंजा कस गया है। सौरभ चंद्राकर को दुबई में नजरबंद किया गया है। प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा जारी रेड कॉर्नर नोटिस पर सौरभ चंद्राकर के खिलाफ संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने एक्शन लिया है। यूएई के अधिकारियों ने सौरभ के ठिकानों पर ताला लगा दिया है। संभावना जताई जा रही है कि जल्दी ही सौरभ चंद्राकर को भारत लाया जा सकता है।
इससे पहले खबर आई थी कि रेड कॉर्नर नोटिस पर महादेव ऐप के एक और प्रमोटर रवि उप्पल को दुबई में गिरफ्तार कर लिया गया है। भारतीय एजेंसियां उसके प्रत्यर्पण की तैयारियां तेज कर दी है।
आपको बता दें महादेव बुक द्वारा ऑनलाइन पोकर, कार्ड गेम, चांस गेम, क्रिकेट, बैडमिंटन, टेनिस, फुटबॉल जैसे खेलों में ऑनलाइन सट्टा लगाने की सुविधा प्रदान करती थी। इसके अलावा तीन पत्ती, पोकर, ड्रैगन टाइगर, वर्चुअल क्रिकेट जैसे कार्ड गेम खेलने की सुविधा देती थी। यही नहीं भारत में होने वाले विभिन्न चुनावों पर भी सट्टा लगाया जाता था।
छत्तीसगढ़ के भिलाई के रहने वाले सौरभ चंद्राकर और रवि उप्पल इस ऑनलाइन महादेव बुक के प्रमुख प्रमोटर हैं जो कि दुबई से इसे संचालित करते हैं।
पैनल और ब्रांच की फ्रेंचाइजी देते थे।
सौरभ चंद्राकर और रवि उप्पल पैनल और ब्रांच बनाकर छोटी फ्रेंचाइजी की तरह बेचा करते थे। वे इन पैनलों से होने वाला 80% लाभ खुद रखते थे। इस पैनल का एक मालिक और आमतौर पर 4 कर्मचारी होते हैं। एक व्यक्ति कई पैनल का मालिक हो सकता है।
बेनामी बैंक खातों और हवाला से होता था लेनदेन
सौरभ चंद्राकर और रवि उप्पल द्वारा दुबई में संचालित मुख्य कार्यालय को पैनल मालिक “एचओ” या “हेड ऑफिस” के रूप में सदर्भित करता था। हेड ऑफिस से ही पैनल मालिक के लिए प्रोफाइल तैयार की जाती थी, जो कि आगे यूजर्स की प्रोफाइल तैयार करते थे। यूजर्स ऑनलाइन साझा किए गए बेनामी खातों में पैसे जमा करते थे और फिर उन्हें हेड ऑफिस द्वारा पैनलों में आवंटित किया जाता था। इन पैसों का भुगतान करने के लिए बेनामी बैंक खातों का उपयोग किया जाता था। ये बैंकखाते धोखाधड़ी से खोले गए थे।
दुबई स्थित सट्टे के हेड ऑफिस द्वारा साप्ताहिक शीट्स पैनल मालिकों के साथ साझा की जाती थी। जिसमें सभी बेट्स के सारे आंकड़े, लाभ या हानि के आंकड़े शामिल होते थे। बेट्स का परिणाम जो भी हो पैनल मालिक का इसमें 20% हिस्सा होता था। ये रकम बैंकिंग चैनल या हवाला के माध्यम से पैनल मालिकों को भेजी जाती थी।
बैंक खाते और व्हाट्सएप नंबर अक्सर बदले जाते थे। यहीकहीं एफआईआर दर्ज होती है तो आमतौर पर छोटे स्तर केपंटर्स या पैनल ऑपरेटरों को ही गिरफ्तार किया जाता था ।
विदेश में बैठे मुख्य आरोपी अब भी भारतीय कानूनएजेंसियों के पहुंच से बाहर हैं।
सारे आंकड़े, लाभ या हानि के आंकड़े शामिल होते थे। बेट्स का परिणाम जो भी हो पैनल मालिक का इसमें 20% हिस्सा होता था। ये रकम बैंकिंग चैनल या हवाला के माध्यम से पैनल मालिकों को भेजी जाती थी।बैंक खाते और व्हाट्सएप नंबर अक्सर बदले जाते थे। यही कहीं एफआईआर दर्ज होती है तो आमतौर पर छोटे स्तर के पंटर्स या पैनल ऑपरेटरों को ही गिरफ्तार किया जाता है। विदेश में बैठे मुख्य आरोपी अब भी भारतीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों के पहुंच से बाहर हैं।
सहायता के लिए कॉल सेंटर खोले
प्रमोटर और पैनल ऑपरेटरों ने बड़ी संख्या में अनजान लोगों के नाम पर बैंक खाते खोले थे। जिसमें कि अधिकांश बैंक खाते सिर्फ छत्तीसगढ़ में ही खोले गए थे। दांव लगाने वाले लोगों और पैनल ऑपरेटरों की सहायता के लिए विदेश से एचओ द्वारा कई कॉल सेंटर चलाए जा रहे हैं।